Monday, May 18, 2020

प्रवासी मजदूरों की व्यथा

क्यों रहे हम मजदूर,
क्या किसी ने कभी सोचा।
पढ़ने का मन हमारा भी था,
हमने भी था एक सपना देखा।।

नहीं थी औक़ात
निजी स्कूल में पढ़ने की,
सरकारी में नहीं थी
पढाई किसी काम की।।

सरकारी स्कूलों को दुरुस्त
करने का कब किस ने सोचा,
शिक्षा के निजीकरण को
कब किसने हैं रोका।।

नौकरी लगाने के नाम पर हो रहे
भ्रष्टाचार को कब किसने है रोका,
फर्जी डिग्री बाँटने वाले को
क्यों नही किसी ने टोका।।

हमारे शहर में क्यों नही
किसी ने उद्योग लगाने का सोचा,
हम क्यों जाते परदेश पैसा कमाने
क्या किसी ने कभी सोचा।।

हमको भी आती हैं अपने घर की याद
क्या किसी ने हमारे लिए ये सोचा ।।

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