इस लॉक डाउन के आगे बेबस हो गए,
कभी ना माँगकर खाया हो जिसने।
वो आज माँगने पर मजबूर हो गए,
इस लॉक डाउन के आगे बेबस हो गए।।
आये थे शहर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने,
पता नहीं था कि ये दिन भी देखने को मिलेगा।
अपने ही देश में परदेशी हो गए,
लॉक डाउन के आगे बेबस हो गए ।।
शहर के लोगों ने भी नही रोका
अपने घर जाने से,
इस शहर को शहर बनाया
हमने अपने हाथों से।।
हमारा गुनाह सिर्फ़ इतना हैं
कि हम मजदूर हैं।
वक़्त के आगे आज
हम मजबूर हैं।।
अमीर लोगों को
विदेश से लाया गया।
मुझे अपने ही देश में
परदेशी बना दिया गया।
मेरा कसूर सिर्फ इतना
कि भारत को बनाने में खुद को खपा दिया।
ए साहिब तूने मेरी
देशभक्ति का अच्छा सिला दिया।।
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